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हास्य कवि सम्मेलन छींटे और बौछारे

मस्ती के रंग
मस्ती के रंग
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यूँ की बसंती ने किया है कवि सम्मेलन का आयोजन पधारे है इसमें बड़े बड़े दिग्गज …………. दिल

थाम लीजिए सीट थाम लीजिए हाथ में भांग   का जाम लीजिए आज के कवि सम्मेलन में विशेष है आनंद

लीजिए कवि सम्मेलन का इसका आगाज बसंती सुबह ही कर चुकी है………..

वाजपई जी

सुनो सुनो सबको एक ताजा खबर सुनाये
आज तो होली के दिन वाजपयी जी पछ्ताए
लिखते रहे मीरा पर अब राधा को कैसे मनाये
रूठ गयी उनकी राधा अब होली किस संग खेले
अपनी राधा के तीखे तीखे बाणों को कैसे झेले
मुह लटका कर मन ही मन खुद से है कहते
काश के थोडा सा अपनी राधा पर भी लिख देते
कैसे और किस संग अब मनाये होली ‘
तबी राधिका बोली प्रिये चलो मुस्काओ
झूठ थी वोह नाराजगी आओ रंग लगाओ
मिल के मनायेगे आज हम तो होली
बुरा न मनो वाजपयी जी होली है होली
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गब्बर सिंह आगे आगे पीछे पूरी टोली
पैर पड़ते उलटे सीधे सूझे खूब ठिठोली
कभी करते छेड खानी और मचाते हुडदंग
कुछ गलती नहीं उनकी चढी हुई है भंग
श्रीमती जी घबराई और पकड़ा उनको धाय
नहीं चूके गब्बर और दिया उनको नहलाय
दिया उनको नहलाय  औ खूब ठुमके लगाय
थक गई श्रीमती जी तब लगी जब  बडबडाय
घबराय बेचारे और जुट गए  खूब पांव दबाए
अचम्भे में आगये सब दांतों तले अंगुली दबाये
गुस्सा मुस्कराहट तो देखा आज ये रंग देखा हाय
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कुशवाह जी को जब श्रीमती जी ने
बेलन की जगह चिकोटी चिमटे से
काटते हुए प्यार से उठाया .
अलसाई आँखें खोली इतराते हुए
श्रीमती जी को देखा आँखें तरेरे हुए
कुशवाह जी घबराए कपकपी आय
लथपथ पसीने से और मिमियाए
बोली श्रीमती जी स्वर में नरमी लाये
आज नहीं तू तू मैं प्रेम की होली मनाएं
लगी लाटरी कुशवाह जी की तुरंत धाय
रसोई में जाकर चाय पकौड़े लिए बनाए
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महंगाई ने जुल्म है ढाया
सोच सोच के सर चकराया
मैडम ने भी हुकम फ़रमाया
नयी साड़ी लेने का मन बनाया
पिया जी को ये विचार सुनाया
सुनके ये विचार अशोक जी का
दिल घबराया और सर चकराया
ये कैसा धर्मपत्नी जी ने मन बनाया
अशोक जी लगे फरमाने
प्रिये तुम्हारी वो पीली साड़ी
बड़ी ही मन भावे गजब है ढावे
उसमे तुम लगती हो ऐश्वर्या
पत्नी भी सुन के अपनी प्रशंशा
मन ही मन मुग्ध हुए जावे
कहे पहनू वही जो पिया मन भावे
अशोक भाई बड़े ही चालाक
भाभी जी को दिया बहकाए
साड़ी अब भाभी पीली ही पहने
भाई खुश हो गए चलो बाला टली
सस्ते में ही होली निपट गयी
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देखो जरा तो अश्विनी जी शेर की तरह गुराए
किस पर है हिम्मत जो हमको रंग लगाये,
हम तो है जंगल के राजा तुम सब हो खरगोश
इतना सुनते ही सब को आ गया फिर जोश
छिना मुखोट शेर का मुख से चहेरे पर रंग लगाया ,
तबले मंजीरे के धुन पर खूब उन्हें नचवाया
शेर दिखने से भैया जी नहीं बनोगे शेर ,
शेर के ऊपर भी होता है देखो सवा शेर
होली के सब रंग है पक्के अश्विनी जी अब कैसे छुटाए
रंग गए रंगले पानी से भीगी बिल्ली कहलाये
अश्विनी जी भीगी बिल्ली कहलाये बुरा न मानों होली है

बने चाहे दुश्मन ये सारा ज़माना सलामत रहे ये दोस्ताना न हमारा

बने चाहे दुश्मन ये सारा ज़माना सलामत रहे ये दोस्ताना न हमारा

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