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जागरण की शोले

मस्ती के रंग
मस्ती के रंग
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साहिबान कद्रदान , बच्चे बूढ़े और जवान ………यूँ तो बसंती हमेशा ही करती है धमाल देखिये जागरण की शोले में सब ब्लोगर्स का धमाल

बसन्ती का परोगराम हो और शोले की बात न हो ये तो नामुमकिन है इसलिए बसन्ती ला रही है,जागरण की शोले का स्पेशल शो
कुछ कलाकार पर्दे पर हैं और कुछ पर्दे के पीछे…………… आइये देखिये फर्स्ट डे फर्स्ट शो ……… जागरण की शोले

यूँ कि बसंती ले के आ गयी है शुक्रवार को फर्स्ट डे फर्स्ट शो ........ "जागरण की शोले"
यूँ कि बसंती ले के आ गयी है शुक्रवार को फर्स्ट डे फर्स्ट शो ........ "जागरण की शोले"

सुनो सुनाये एक कविता तुम को
सुनो सुनाये एक कविता तुम को

जागरण की शोले में देखिये पहली बार देखिये शाही जी और कुशवाह जी को साथ साथ

जागरण की शोले में देखिये पहली बार देखिये शाही जी और कुशवाह जी को साथ साथ

यारो मैं भी तो कवि हूँ ।
जात पर न पात पर,
ज्ञानी जी की बात पर,
टैटू गुदाए हाथ पर,
अपनी ही दीवार पर,
माला पहने इक छवि हूँ,
यारो मैं भी तो कवि हूँ । ।
पद्मिनियों की आह चाह,
उनकी परस्पर ईर्ष्या डाह,
चातक सी चहुं ओर निहार,
पलक झपकते लेतीं राह,
भांड नहीं जी, लिच्छवि हूँ ।
यारो मैं भी तो कवि हूँ । ।
आंय बांय धांय टांय,
धूम धड़ाका सांय सांय,
कहां पियें और कहां खायं
तुम निकलो तब तो हम जायं,
एक उदीयमान रवि हूँ।
यारो मैं भी तो कवि हूँ । ।
व्याकुल आँखें रहीं निहार,
प्यार मोहब्बत का व्यौपार,
सैयां उतरें कैसे पार,
इतराती पनघट पर नार,
शव-साधन की भैरवि हूँ,
यारो मैं भी तो कवि हूँ । ।

लखन उधर चल- नहर पर टहल- बतख मत पकड़- नटखत मत बन- बरगद तक सरपट चल- गिटपिट मत कर ।
सुन्दरियों के नर्तन-वर्तन,
नहिं भाते अब मांजें बर्तन,
खड़ताल बजा के करें कीर्त्तन,
लगतीं शैतान की नानी हैं,
कहतीं झाँसी की रानी हैं,
वैसे तो बड़ी सयानी हैं,
लेकिन अब भरतीं पानी हैं,
ये आफ़त की परकाला हैं,
पूरी ड्रैगन की खाला हैं,
दिखती हैं जैसे बाला हैं,
अब बनीं ये खुद की निवाला हैं
कहने को अबला नारी हैं,
ये कन्या नहीं कुंवारी हैं,
इक बार न बोलें देवी हूँ ।
यारो मैं भी तो कवि हूँ । ।
नैन बिछाए बाँहें पसारे, तुझको पुकारे, देश तेरा — आ अब लौट चलें –

मुसकाएं तो मधुबाला हैं,
मटकें तो बिजन्तीमाला हैं,
छज्जे पर बैठी बिल्ली हैं,
लपको तो दूर की दिल्ली हैं,
लगती तो नार नवेली हैं,
पर भुतही कोई हवेली हैं,

तुम कहां फ़ंसे मेरे भाई,
इनकी तो ज़ात ही हरजाई,

तू मूढ़ ब्रह्म की मूरत है,
इस देश को तेरी ज़रूरत है,
बेहतर है पल्ला झाड़ ले तू,
कोई सच्चा मक़सद जुगाड़ ले तू,

ये झूठ-मूठ घोषित करतीं,
घंटेवाले की जलेबी हूँ ।
पर, यारो मैं भी तो कवि हूँ ! !

अरे दीवानों मुझे पहचानो कहाँ से आया मैं हूँ कौन ??? मैं हूँ कौन मैं हूँ कौन … मैं हूँ,. मैं हूँ ,..मैं हूँ कौन ???

यूँ कि फर्स्ट डे फर्स्ट शो से

मच गयी है खलबली मंच में

गब्बर सोचे बसंती कौन

ठाकुर बने कुशवाह

बोले बसंती है तू कौन

“राज” है ये भी जान  जाओगे

मुझको तुम पहचान जाओगे

होली में बसंती के संग

जमने वाला है और भी रंग

साथ में मिलेगी तुमको भंग

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