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नई नवेली दुल्हन की थी पहली होली ससुराल में, कैसे रंग दूं सबकी होली पङी थी सोच के जाल में डर सासु मां के गुस्सैल स्वभाव से भी था पर यादगार होली बनाने का चाव भी था ससुर जी की गंभीरता का भान भी था होली के रास रंग में रखना उनका मान भी था ननद देवर के स्वभाव से भी थी अंजानी पर कैसे छोङे,फिर होली तो अगले साल है आनी पिया जी से जो लेना चाहा उनकी सोच का ब्यौरा आंखे कङे कर अपने,उन्होने भी दिल उसका तोङा सोच सोच हलकान हुई,तो नींद ने आ घेरा देखा सासु मां गुस्से से लाल हुईं है,पीला उसका चेहरा नीली आंखों मे छा गया काले बादल का पहरा मोटे आंसू छलके ही थे कि पिया जी ने लिया संभाल कैसी थी अंजानी ,जान रहे थे सब उसका हाल सपना था टूटा,सासु मां का था सर पर हाथ है होली तुम्हारी पहली हम सब है तुम्हारे साथ अब इस घर के सुख दुख तुमसे,तुम घर की मर्यादा कह देना हर सुख–दुख हमसे,बांट लेगे मिलकर आधा-आधा अब होली का तुमको मतलब समझाउं सीख जो पाई थी मैने ,तुमको भी वतलाउं होली है रंगो का त्योहार ,हर रंग निराला मतलब से परिपूर्ण,खुद में है आला हरा विकास है,लाल है आजादी सफेद सादगी,पीला है आशावादी नीला स्वप्निल,काला अनुराग बढाए नारंगी-सुनहरा चटख एहसास जगाए इन रंगों से सजना ,हर पल आएगी खुशहाली हर दिन होगा होली सा,हर रात होगी दीवाली लिए रंग की थाली देखा खङे थे सभी कतार मे बिने रंगे थे गुलाबी,सबके चेहरे प्यार में हरियाली फैलाउंगी घर मे उसने प्रण किया अपना तन-मन-धन घर को अर्पण किया शुरुआत हुई होली की,सास-ससुर के चरणों पे डाल गुलाल किया रंग से फिर बांकी चेहरों को भी लाल यादगार रही ये होली,संग पिया के सबका साथ मिला अमुल्य निधि पाकर सीख की, सुंदर मन कमल खिला होली ने उसे कर्तव्यों-दायित्वों का एहसास दिलाया ससुराल नहीं,अपना ही घर उसने वापस पाया अपना ही घर फिर वापस पाया,वापस पाया
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प्रवीन मलिक जी को होली का स्वरूप आज के बदले परिवेश में जो दिखता है ,उनको दुखी करता है और अपनी पीड़ा को उन्होंने कुछ यूँ व्यक्त किया है
रंगों की होली अब चली गयी ,
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चलिए इजाजत दीजिए बसन्ती को और कल को आपके लिए एक मजेदार सरप्राइज के साथ आ रही है बसन्ती ,तब तक कयास लगाईये ,देखें धन्नो से तेज दौडता है क्या आपका दिमाग
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